कभी रेलवे स्टेशन पर, कभी बस स्टॉप पर तो कभी चौराहों पर अक्सर छोटे बच्चे दिखाई देते है कोई ना कोई समान बेचने की कोशिश में.
फिर चाय की दुकान का छोटू उसे तो सब पहचानते है. जब आप बाहर खाने के लिए जाते है तो भी आप कही ना कही किसी छोटू को काम करते देखते ही होंगे.
बाल मज़दूरी की समस्या कोई नयी नहीं है जो आज के दौर में पैदा हुई हो। ये समस्या काफ़ी पुरानी है. आज बाल दिवस के मौके पर हमारा सवाल एक ही है की क्या इन्हे अपना बचपन लौटाया जा सकता है?