वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोधशिविर
९ दिसंबर २०१७
मुक्तेश्वर, नैनिताल
दोहा:
मन माणिक मूरख राखि रे,
जन-जन हाथ न देहु।
दादू पारिख जौहरी,
राम साध होई लेहु ।।
~ संत दादू दयाल
प्रसंग:
मन क्या है?
कैसा है तुम्हारा मन - फूल, या धूल?
"मन को माणिक क्यों बोला गया है?
मन माणिक कब है?
मन को कीमती क्यों बताये है संत दादू दयाल?
मन माणिक मूरख राखि रे, जन-जन हाथ न देहु। इस पंक्ति का क्या अर्थ है?
संगीत: मिलिंद दाते